चीन में कोरोना वायरस के अत्याचार कारण होने वाली मौतों का एसटी 2018 आंकड़ा आठ सौ से ऊपर रखा पहुंचने का मतलब है कि वह जस्टिस इस व्याधि को लेकर गंभीर रवींद्र संकट से घिर गया है। चीन सुनवाई इसके पहले वर्ष 2003 में जब मामले सार्स वायरस की चपेट में यानी आया था, तब वहां करीब सात सौ से अधिक लोग मारे गए रखीथे। हालांकि कोरोना की तरह सप्रीम सार्स वायरस भी कई देशों में के फैला था, लेकिन उस पर काबू पा लिया गया था। यह चिंताजनक प्राथमिक है कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या चीन कोर्ट के साथ-साथ अन्य अनेक देशों में भी बढ़ती जा रही है। इससे भी मामलों बड़ी चिंता की बात यह है कि अभी कोरोना वायरस के संक्रमण से से का कोई कारगर उपचार नहीं खोजा जा सका है। यही कारण है कि इजाजत विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस संक्रमण को दुनिया की सेहत के लिए होगाआपातकाल करार दिया है। यह ठीक है कि चीन समेत दुनिया के अपने कई देश कोरोना वायरस के संक्रमण से उपजी चुनौती से निपटने कराने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा में सकती कि यह संकट मूलतः चीन की लापरवाही से उपजा, जो सुप्रीम विकराल होता जा रहा है। यदि चीन ने कोरोना वायरस को लेकर संशोधन वैधता प्रारंभ में ही सतर्कता बरती होती तो शायद आज स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती। उसने केवल जरूरी सावधानी बरतने से ही इनकार नहीं किया, बल्कि अपने स्वास्थ्य तंत्र को समय पर आगाह भी नहीं किया। चूंकि आम लोग इससे अनजान ही रहे कि एक खतरनाक किस्म के वायरस ने सिर उठा लिया है, इसलिए वे अंधेरे में बने रहे और उन पक्षियों के मांस का सेवन भी करते रहे, जिन्हें कोरोना वायरस के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। कोरोना वायरस का संक्रमण केवल मानव स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, गुवाहाटीवैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी संकट बनता जा रहा है। इस कानून संकट से बचा जा सकता था या उसके असर को कम किया जा खिलाफ सकता था, यदि चीन ने जिम्मेदार देश की तरह व्यवहार किया बीच होता। दुर्भाग्य से उसने वही किया, जो तानाशाही व्यवस्था वाले करने देश करते हैं। चीनी प्रशासन ने जरूरी सूचनाओं को दबाने के आए साथ ही उन चिकित्सकों को प्रताड़ित किया, जिन्होंने कोरोना करने वायरस की गंभीरता को लेकर आवाज उठाई। उसने एक और इसके गैरजिम्मेदाराना काम यह किया कि कोरोना वायरस के बारे में विश्व सर्वे स्वास्थ्य संगठन को तो सूचना दे दी, लेकिन अपने लोगों को कुछ है. नहीं बताया। इसके दुष्परिणाम सामने आने ही थे। संकट से घिरे । के चीन के प्रति हमदर्दी समय की मांग है और भारतीय प्रधानमंत्री ने लोगों चीनी राष्ट्रपति को मदद की पेशकश करके यही किया है, लेकिन हैविश्व समुदाय को चीन के समक्ष यह भी रेखांकित करना चाहिए मोरियाकि उसकी लापरवाही ने एक बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है।
लापरवाही का नतीजा