कोरोना की गंभीरता को यूं समझें, जानें कौन है हाई रिस्क पर


मुंबईः कोरोना वायरस को लेकर तमाम तरह की बातें चल रही हैं। लेकिन कोई भी वायरस कैसे एक शख्स से होते हुए हज़ारों-लाखों लोगों तक पहुंच जाता है, इसे लेकर कई बार स्टडी की गईं। ब्रिटेन ने बरसों तक कॉमन कोल्ड पर रिसर्च की, लेकिन साल 1989 में इसे बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे बंद कर दिया गया। हालांकि रिसर्च के दौरान कुछ दिलचस्प प्रयोग किए गए। ऐसे ही एक टेस्ट के दौरान एक वॉलंटियर की नाक में एक डिवाइस फिट की गई। इस डिवाइस से उतना ही फ्लूड निकल रहा था, जितना अमूमन जुकाम के दौरान नाक बहने के दौरान निकलता है। इसके बाद उस वॉलंटियर को दूसरे वॉलंटियर के साथ एक कॉकटेल पार्टी में घुलने-मिलने दिया गया। इस बात को गुप्त रखा गया था कि डिवाइस से जो फ्लूड निकल रहा था, उसमें एक रंग मिला हुआ था, जिसे सिर्फ अल्ट्रावॉयलेट रोशनी में देखा जा सकता था। सभी लोगों से कुछ समय मिलने के बाद अल्ट्रावॉयलेट रोशनी में देखे जाने वाला रंग हर किसी के हाथों पर, सिर पर, शरीर के बाहरी हिस्सों पर मौजूद था। इतना ही नहीं, वह रंग शीशों पर, दरवाजों के हैंडलों पर, सोफा कुशंस आदि बल्कि आप इनका अलावा जो भी नाम लें, वहां मौजूद था।


अब सवाल है कि ये वायरस इतनी तेजी से फैलते कैसे हैं? दरअसल, एक इंसान अपने चेहरे को एक घंटे में औसतन 16 बार छूता है और हर बार छूने पर बीमारी फैलाने वाले कीटाण एक जगह से दूसरी जगह ट्रांसफर होते रहते हैं, नाक से निकलकर स्नैक्स ट्रे से होते हुए दूसरे शख्स और उसके द्वारा दरवाजे के हैंडल से तीसरे शख्स तक और इसी तरह आगे भी फैलता रहता है, जब तक कि हर कोई और हर चीज़ उसके असर में न आ जाए। यूनिवर्सिटी ऑफ एरिज़ोना में भी ऐसी ही एक स्टडी हुई। रिसर्चर्स ने दफ्तर की इमारत के मेटल के डोर हैंडल को संक्रमित किया और पाया कि करीब 4 घंटे में वाइरस पूरी बिल्डिंग में फैल गया, करीब आधे कर्मचारियों को उसने अपनी चपेट में ले लिया और करीब-करीब हर साझी डिवाइस जैसे कि फोटोकॉपी मशीन, कॉफी मशीन आदि को अपनी चपेट में ले लियादरअसल, इस तरह के इन्फेक्शन फैलाने वाले ज्यादातर वाइरस तीन दिन (कोरोना इससे कई ज्यादा दिन तक) तक जिंदा रह सकते हैं। हैरानी वाली बात यह है कि वायरस के फैलने का सबसे कम खतरा एक-दूसरे को किस करने से होता है। यह एक दूसरी स्टडी में साबित हुआ है। यह स्टडी यूनिवर्सिटी ऑफ विसकॉन्सिन में हुई, जिसमें वॉलंटियर्स जुकाम के वाइरस से पीड़ित थे, लेकिन किस करने पर भी यह इन्फेक्शन आगे नहीं फैला। छींक और खांसी का भी यही हाल था। सर्दी-जुकाम का वाइरस सबसे ज्यादा एक-दूसरे को शारीरिक रूप से छूने पर फैला। बॉस्टन में सबवे ट्रेनों पर एक सर्वे हुआ था। इसमें साबित हुआ कि धातु के खंबे वायरस के पनपने के लिए बहुत बढ़िया जगह साबित हुए। यहां से ये वाइरस ट्रेनों की सीटों के कवर और प्लास्टिक के हैंडग्रिप्स तक पहुंचे। स्टडी बताती हैं कि वायरस के ट्रांसफर का सबसे असरदार तरीका मुड़े-तुड़े करंसी नोट और नाक से निकलने वाला लिक्विड है। 2008 में स्विट्ज़रलैंड में हुई एक स्टडी में साबित हुआ कि फ्लू का वायरस करंसी नोट पर करीब ढाई हफ्ते तक जिंदा रह सकता है, अगर इसमें नाक के मैल का एक भी कण मिल जाए। नाक के मैल के बिना मुड़े-तुड़े पैसों में कोई भी वायरस कुछ घंटों से ज्यादा जिंदा नहीं रह सकता। इसका इन्क्यूबेशन पीरियड (वायरस से पीड़ित इंसान में लक्षण आने में 14 दिन तक लग सकते हैं।


हाई रिस्क में सभी नहीं


देश-विदेश में कोरोना से मौत का शिकार बने लोगों की उम्र का प्रतिशत


• उम्र 10 साल से कम- 0% मौतें


• 10 से 40 साल (1000 में 2 लोग)- 0.2%


• 40 से 50 साल (1000 में ___4 लोग)- 0.4%


• 50 से 60 साल- 1%


• 60 से 70- 3.4%


• 70 से 80-8%


• 80 से ऊपर 15%


यानी 70 साल से ऊपर के लोगों को सबसे ज्यादा ऐहतियात बरतने की जरूरत है। अभी तक देश- विदेश में जो मौतें हुई हैं, उनमें से ज्यादातर को कोई न कोई बड़ी शारीरिक बीमारी पहले से थी। इस वजह से उनके फेफड़े पूरी तरह काम नहीं कर रहे थे। अगर किसी की शुगर काबू में नहीं है तो समस्या बढ़ सकती है। हार्ट के मरीज हों तो उनके लिए भी परेशानी है।


पैनिक न करें


• अगर खांसी है, जुकाम है और सांस फूल रही है, लेकिन बुखार नहीं है तो निश्चिंत रहिए कोरोना वाइरस का इंफेक्शन नहीं है।


• अगर बुखार है, लेकिन खांसी और जुकाम नहीं है तो कोरोना वाइरस का इंफेक्शन होने की आशंका बहुत कम है।


• अगर बुखार के साथ खांसी और जुकाम है, लेकिन सांस नहीं फूल रही है तो जरूरी नहीं कि कोरोना वाइरस का इंफेक्शन ही है।


• अगर कोरोना वाइरस का इंफेक्शन हुआ है तो जरूरी नहीं कि COVID-19 ही है।


• अगर COVID-19 का इंफेक्शन ही हुआ है और सांस नहीं फूल रही है तो ज्यादा परेशान होने वाली बात नहीं है।


• अगर कोरोना इंफेक्शन है और तेज बुखार के साथ सांस फूल रही है तब फौरन अस्पताल में भर्ती हो जाइए, घबराएं नहीं ज्यादातर लोग इलाज के बाद ठीक हो जाते हैं।


साबुन सबसे अच्छा क्यों?


• सिर्फ पानी से हाथ धोना सही नहीं है क्योंकि वाइरस हाथों में चिपका रह जाता है।


• हाथ साफ करने के लिए सैनिटाइजर के मुकाबले साबुन बेहतर है।


• साबुन में फैट जैसा तत्व होता है जो वाइरस में मौजूद लिपिड का आसानी-से खात्मा कर देता है।


• साबुन में फैटी एसिड और सॉल्ट जैसे तत्व होते हैं जिन्हें एम्फिफाइल्स कहा जाता है। ये वाइरस की बाहरी परत को बेकार कर देते हैं।